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Monday 20 April 2009

'बम' बोला..

पहले माहौल कुछ रंगीन था,
दिखने में लगता बड़ा हसीन था..

लोग मिल कर साथ जिया करते थे,
सुख-दुःख की बातें किया करते थे..

अब माहौल बदल गया है,
लोगो में बैर बढ़ गया है..

हिन्दू-मुस्लिम लड़ पड़े है,
सबके घर जल पड़े है..

मैं भी उस माहौल में जा पंहुचा,
देख कर बम मेने सोचा..?

चार तो फट चुके है..!!
कितनो के सर कट चुके है..

ये पांचवा बम है,
फटने में थोडा नम है..!!

मैं जोर से चिल्लाया ,
बम बोला, पहले नज़र नहीं आया..?

अभी प्रेस को बुलवाता हूँ,
फोटो तुम्हारी खिंचवाता हूँ..

पुलिस के हाँथ पकड़वाऊंगा,
नाम बड़ा मैं पाऊंगा..!!

बम बोला, मैं भी इस देश का वासी था,
बेचने वाला मुझे, उस देश का साथी था..

अपने ही देश के लोग गद्दार है,
सिर्फ पैसा ही उनका प्यार है..

एक दिन मुझे उस देश भेज दिया था,
पैसा लेकर बेच दिया था..

मैंने बोला, बड़ी गमगीन कहानी है,
वो बोला, क्या तुम्हे देश को सुनानी है..

जो लोग पहले ही देश को बेच खाए है,
वो क्या तुम्हे सुनने यहाँ आये है..?

भाई, मेने तो निश्चय कर लिया है,
फटने का मन भर लिया है..

बम बोला, अब तुम भाग लो,
अपना रास्ता नाप लो..

वर्ना प्रेस अभी आएगी..!!
मेरी जगह तुम्हारी फोटो खीच चली जायेगी..

zEnith (19th April '09)

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