हर राश्ता क्यूँ नहीं पूछता..?
सवाल ये मुजसे मजहब का..?
सर-से-पाव तक समान हम,
सवाल है सिर्फ ये मजहब का..
फिजा है फैली अमनमे यहांभी,
कुदरत ने क्यूँ नहीं पूछा..?
सवाल ये मुझसे मजहब का..?
खून ये तेरा भी है लाल क्यों..?
मरते वक्त क्यूँ नहीं पूछा..?
सवाल ये मुझसे मजहब का..?
माँ है तुज जेसी मेरी भी..
पालते वक्त क्यों नहीं पूछा..?
सवाल ये मुझसे मजहब का..?
एक चीज़ तो मुझे बतलादो..?
अलग है वहां जो यहाँ नहीं..?
खेत है लहराते हरे यहाँ..
लाल वोह क्यूँ वहां नहीं..?
आओ हमसब साथ बढे..
अमनमे शांति आबाद करे..
अब कोई क्यूँ पूछे..?
सवाल ये मुझसे मजहब का..?
लकीरे खिंची हमने ही..?
सवाल था सिर्फ ये मजहब का..
आओ मिलकर मिटादे..
सरहदे नहीं अब पूछेंगी..
सवाल था सिर्फ ये मजहब का..
रोशन होंगे घर ये सारे..
दियें नहीं अब पूछेंगे..
सवाल था सिर्फ ये मजहब का..
सवाल था सिर्फ ये मजहब का..
अमनकी शांति अब फैलाये..
सवाल है सिर्फ ये मजहब का..
ज़ेनिथ सुरती
११ जन, २०१०
Monday, 11 January 2010
अमनकी आशा..
Posted by Zenith Surti at 04:15 0 comments
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