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Thursday, 16 April 2009

गलती

हमने बस मुँह था खोला,
सर चिल्लाये, अबे तू फिर बोला..?

अरे क्या हम कुछ न बोले..?
वो बोले, ना बनो तुम ज्यादा भोले..

बताओ गलती क्या है हमारी..?
ना बोलो उसी में भलाई है तुम्हारी..

एक दिन हमने कुछ बोल दिया था,
सर का कच्चा चिटठा खोल दिया था..

तब से सर बहुत नाराज़ है,
रोज़ कहते है, आज तुम्हारी बात है..

सुबह ही मेरी बिगड़ गई थी,
"ऐसी" में बर्फ पिघल गई थी..

अब सोचता हूँ सर को कैसे पटाऊ..?
रोते को कैसे हंसाऊ..?

जाकर उनके पास मैं बोला,
थूक दीजिये गुस्सा, कर लीजिये हमजोला..

चिल्लाये, बोले, वापिस तू कुछ बोला..?
देना पड़ेगा हिसाब तुझे मेरे भोला..

तब से चुप बैठ रहा हूँ,
सबको बोलते देख रहा हूँ..

सर बोले, क्यों अब नहीं चिल्लाते हो..?
पास भी मेरे नहीं दिकाई आते हो..?

प्रमोशन की उम्मीद छोड़ चूका था,
किस्मत अपनी खुदके सर फोड़ चूका था..

बीवी भी अब चिल्लाती थी,
कहती शर्म तुम्हे नहीं आती थी..

तुम्ही बताओ, गलती क्या थी हमारी..?
शायद सुन लेता तभी कोई आवाज़ हमारी..

zEnith (16th April '09)

3 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan..narayan...narayan

alka mishra said...

चाहे जीवन में फूल खिले
पहले काँटों से प्यार करो
जीने की लगन लगी हो तो
पहले मरना स्वीकार करो
खुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
जय हिंद

रचना गौड़ ’भारती’ said...

ब्लोग जगत मे आपका स्वागत है। सुन्दर रचना। मेरे ब्लोग ्पर पधारे।